रविवार, 27 जनवरी 2019

टुकड़ा मैं तेरे दिल का....

पापा की उम्र हो गई थी, वे तकलीफ झेल रहे थे, शारीरिक कष्टों से उन्हें मुक्ति मिल गई, वे निर्वाण के मार्ग पर चले गए, ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे.....पिछले पाँच दिनों से सांत्वना के ऐसे तमाम शब्द सुनते हुए इस बात पर यकीन करने की कोशिश कर रही हूँ कि पापा अब इस दुनिया में नहीं रहे। मायका और मेरा घर पास पास ही है, करीब सात आठ मिनट की दूरी पर.... कुछ भी काम होता, कोई बात होती, पापा कहते - मीना को बुलाओ। मीना की बात पापा के लिए लोहे की लकीर थी। सितंबर 2018 में पापा की तबीयत बिगड़नी जब शुरू हुई थी तो किसी के कहने से अस्पताल नहीं जा रहे थे। मैं स्कूल से गई तो देखा, चेहरा और पैरों पर सूजन है। मैंने कहा - पापा तैयार हो जाओ, चेकअप के लिए चलते हैं। पापा तैयार हो गए। मम्मी ने आश्चर्य प्रकट किया-अभी लता ( छोटी बहन ) इतना जिद करके गई, मैंने भी कितना कहा, तब तो नहीं गए ये !!! एक सप्ताह बाद पापा की तबीयत इतनी खराब हो गई कि अस्पताल में एडमिट करना पड़ा। वहाँ से एक सप्ताह बाद छुट्टी मिली तो मैं अपने घर ले आई पापा - मम्मी दोनों को। पापा की तबीयत अब पहले से बेहतर थी, हालांकि कमजोरी बहुत थी। पंद्रह दिन की सेवा सुश्रुषा के बाद स्वास्थ्य में सुधार आता लग रहा था।
अचानक एक रात करीब ढ़ाई बजे पापा जोर जोर से रोने लगे। पापा और मम्मी हमारे बेडरूम में सोते थे और हम तीनों बाहर हॉल में (मैं, मेरे पति और बेटा अतुल)। हम तीनों उठकर भागे अंदर। मम्मी बदहवास। पापा रो रोकर बोल रहे थे - अरे ये मुझे ले जाएँगे, मुझे मार देंगे, ये मुझे मारने आए हैं। मैं घबरा तो गई थी पर हिम्मत करके पापा को छाती से चिपकाकर कहा - कौन ले जाएगा पापा ?
पापा वैसे ही रो रोकर - ये लोग, देख ना सामने खड़े। आदमी, औरतें, बच्चे सब हैं। अरे ! ये मुझे ले जाएँगे !
मैं - पापा आप मुझको पकड़ लो, किसकी हिम्मत है जो मुझसे आपको छीनकर ले जा सके !
पापा ने एकदम डरे हुए बच्चे की तरह मुझे भींच लिया। मैंने मम्मी से भगवद्गगीता माँगी और पापा से कहा - पापा, गीताजी सुनाती हूँ। आप तो रोज गीताजी पढ़ते हो, आपको कौन डरा सकता है।
एक हाथ से पापा को चिपकाए हुए, दूसरे हाथ से भगवदगीता पकड़े, पहला अध्याय पूरा सुनाया। पापा डर से थर थर काँप रहे थे। मम्मी, ये, अतुल तीनों हैरान परेशान खड़े रहे। ना जाने कौनसी दैवीय शक्ति ने मुझे उस समय हिम्मत दी। दूसरा अध्याय पूरा होते होते पापा थोड़े संयत हुए और बोले - मैं अपने घर जाऊँगा। सुबह के चार बज रहे थे। रिक्शा मँगाकर हम सब उन्हें उनके घर ले गए। वहाँ चाय पीकर पापा सो गए। उस दिन के बाद पापा जैसे संसार से विरक्त हो गए। कोई कुछ पूछता तो जवाब दे देते, अन्यथा मौन। कभी कभी टेलिविजन पर कोई प्रोग्राम देख लेते। वरना वो और उनकी भगवद् गीता। लगातार छः छः घंटे गीता पढ़ना उनका नित्यकर्म हो गया। शायद उन्हें आभास हो गया था।
इस बार तबीयत बिगड़ी तो सीधे आइसीयू में वेंटिलेटर पर। दो दिन में पापा की शक्ल बदल गई जैसे। फिर वही जिद, ये मशीनें निकाल दो, मेरा दम घुटता है। मुझे घर जाना है। एक सप्ताह डॉक्टरों ने अपनी कोशिशें करके जवाब दे दिया। घर पर ही ऑक्सीजन लगाकर रखने को कह दिया। 
18जनवरी को हम पापा को घर लाए। मम्मी ने बताया कि उनकी भगवद् गीता का पाठ अधूरा रह गया था। तब मैंने उनके पास बैठकर गीताजी के सातवें से लेकर अठारहवें अध्याय तक पढ़कर सुनाया। रात भर पापा के पास बैठी विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ, नारायणजाप करती रही। बचपन से अब तक के पापा के सारे रूप, उनकी सारी भूमिकाएँ स्मृति को झकझोर दे रही थीं। तब ब्लॉग पर एक पोस्ट लिखी। पापा के स्वास्थ्य लाभ के लिए सभी ने प्रार्थना भी की कमेंट्स में। 
लेकिन जब चलने का वक्त आ जाता है तो कोई दुआ काम नहीं आती। 
21 जनवरी की दोपहर करीब चार बजे मैं पापा के पास बैठी उनका सिर सहला रही थी। उनका बात करना तो एक हफ्ते से बंद था। अचानक वे बोलने लगे - मीना, मैं तेरा बेटा बनूँगा। 
उनकी आवाज एकदम बदल गई थी और वे कठिनाई से ही बोल पा रहे थे। 
मैंने कहा - पापा, बेटा ही बन गए हो आप मेरा, देखो ना आपको चम्मच से खिलाती पिलाती हूँ ना बच्चे की तरह। 
पापा - नहीं, मैं तेरा बाबू बनूँगा। अतुल बनूँगा। 
मैं - अच्छा, कब बनोगे मेरा बाबू ?
पापा - आज ही बनूँगा।
मैं - पक्का ?
पापा - हाँ पक्का।
तभी ना जाने किस प्रेरणा से मेरे मुँह से निकला - पापा, आप अतुल का बेटा बनकर मेरे पास लौट आना। 
मैंने देखा कि उसके बाद पापा के चेहरे पर असीम शांति छा गई।
उस समय मेरे अलावा मेरी दो बहनें और मेरा छोटा भाई भी पापा के पास ही थे पर पापा ने मुझसे ही ऐसा क्यों कहा? यह भी एक ऋणानुबंध ही तो है !!!
उसके बाद दो तीन बार अपने दोनों हाथ उठाकर उन्होंने हमें आशीर्वाद दिया।
रात दस बजे पापा ने चार पाँच लंबी साँसें लीं और अपने पार्थिव शरीर का त्याग कर दिया। 
पापा, इस बार मैं आपको नहीं बचा पाई ! काल के क्रूर पंजे आपको छीन कर ले ही गए। आप जहाँ भी हों, परमशांति में हों ! आपका आशीष हम पर सदा बना रहे!!!

सोमवार, 21 जनवरी 2019

पापा बहुत कुछ करते हैं



31 दिसंबर 2017 (पापा के जन्मदिन पर ली गई तस्वीर...)
मम्मी कहती उन्हें आलसी
नहीं 'वाक' पर जाते
ना जाने थोड़ा चलने से
क्यों पापा थक जाते !
पर छायादार पेड़ के जैसे
हम सब पर साया रखते हैं,
पापा कुछ नहीं करके भी
बहुत कुछ करते हैं !!!

पीहर आई हर बेटी की
सुनते हैं दुःख सुख की बातें,
जर्जर होती काया पर भी
सहते बीमारी की घातें !
भजन कीर्तन गायन से
मन की व्यथा बिसरते हैं !!!
पापा कुछ नहीं करके भी
बहुत कुछ करते हैं !!!

पोतों की बचपन लीलाएँ
देख-देख मुस्काते हैं,
मूड कभी आया तो पापा
हारमोनियम बजाते हैं !
इधर उधर बिखरी चीजों को
उठा-उठाकर रखते हैं !
पापा कुछ नहीं करके भी
बहुत कुछ करते हैं !

17 जनवरी 2019.....(पापा अस्पताल में हैं)
अस्पताल में...
वार्डबॉय से नर्सों तक, 
सबको नाच नचाते हैं !
इस कैद से मुझको रिहा करो,
वे रह-रहकर बड़बड़ाते हैं !
डॉक्टरों के सारे ताम-झाम
पापा के आगे पानी भरते हैं !

काल से लड़ते हैं मेरे बहादुर पापा
हम डरपोक बच्चे डरते हैं !
झूठमूठ कहते हैं - अब ठीक हूँ,
तब मेरी आँखों से आँसू झरते हैं !!!
पापा कुछ नहीं करके भी
बहुत कुछ करते हैं !!!


शनिवार, 19 जनवरी 2019

दूर के ढोल सुहाने

दूर के ढोल सुहाने
लगते हैं
पास आने पर डराने
लगते हैं।

जिद ना करना
सितारों को कभी छूने की ।
आसमां के फूल
हाथ नहीं महकाते
उनको सहलाओ तो वे
हाथ जलाने लगते हैं।

वक्त गर साथ दे,
चूहा भी शेर होता है।
गुरुघंटाल भी गुरुओं को
सिखाने लगते हैं।
खिले फूल लगते हैं
सब को प्यारे,
फेंक दिए जाते हैं वे, जब
मुरझाने लगते हैं।

इक नया रूप निकलता है
यहाँ पर्त-दर-पर्त !
हर एक चेहरे को मुखौटे
लगाने पड़ते हैं।
महल विश्वास का
ढह जाता है पल दो पल में
जिसकी बुनियाद ही रखने में
जमाने लगते हैं।

खाली घड़े इतराने लगते हैं
आधा भरते ही,
छलकने छलछलाने लगते हैं !

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

जनम-जनम के अनुबंधों पर !!!

जनम जनम के अनुबंधों पर
हावी हो गई जग की रीत !
फिर सपनों के ताजमहल की
कब्र में सोई मेरी प्रीत !!!

मूरत तेरी गढ़ते जाना
पल-पल सूली चढ़ते जाना
कौन कसौटी, क्या पैमाना
ना यह जीना, ना मर पाना !

नियति डोर को तोड़ के आजा
मेरे मन के बिछुड़े मीत !
फिर सपनों के ताजमहल की
कब्र में सोई मेरी प्रीत !!!

मैंने तो पाषाणों से भी
बहते देखे हैं 'सोते' !
क्या मेरी पीड़ा पर अब भी
निष्ठुर नयन नहीं रोते ?

टूटे तार हृदय वीणा के,
बिखरा साँसों का संगीत !
फिर सपनों के ताजमहल की
कब्र में सोई मेरी प्रीत !!!

जिनको निभा नहीं पाए तुम,
काहे कर गए ऐसे कौल !
करते हैं उपहास मेरा अब
मेरे ही गीतों के बोल !

भावों के इस खेल में प्रिय,
मैं हार गई, ना पाई जीत !
फिर सपनों के ताजमहल की
कब्र में सोई मेरी प्रीत !!!