शनिवार, 25 जनवरी 2020

है वही प्रार्थना शुभकारी !

जिन वादों में, संवादों में
ना हृदय कहीं, ना भाव कहीं।
संबंध नहीं, व्यापार हैं वो
अपनों - सा जहाँ बर्ताव नहीं !

आँधी के संग उड़ते-उड़ते,
माटी सोचे, सूरज छू लूँ !
लेकिन जिस आँगन में खेली,
उस आँगन को कैसे भूलूँ !
उपकृत होकर अपकार करे
माटी का यह, स्वभाव नहीं !
संबंध नहीं, व्यापार हैं वो
अपनों - सा जहाँ बर्ताव नहीं !

जब पलकों में पलनेवाले,
सपनों के टुकड़े हो जाएँ !
जिनसे जोड़ा दो हृदयों को,
वो टाँके उधड़े हो जाएँ !
तब लगता है, इस दुनिया में
निश्छलता का निर्वाह नहीं।
संबंध नहीं, व्यापार हैं वो
अपनों - सा जहाँ बर्ताव नहीं !

व्याकुलता के, चंचलता के,
अस्थिरता के, भावुकता के !
ऐसे पल भी निस्सार नहीं,
वे हैं प्रमाण मानवता के !
क्या निर्मल होगा गंगाजल
गंगा में यदि, प्रवाह नहीं !
संबंध नहीं, व्यापार हैं वो
अपनों - सा जहाँ बर्ताव नहीं !

आह्लाद - विह्वलता का संगम,
हो अश्रु - हास्य का जहाँ मिलन !
उस पावन क्षण में जीने को,
देवों का भी करता है मन ।
है वही प्रार्थना शुभकारी
जिसमें पाने की चाह नहीं !
संबंध नहीं, व्यापार हैं वो
अपनों - सा जहाँ बर्ताव नहीं !

मंगलवार, 7 जनवरी 2020

द्वीप


अतलस्पर्शी गहन मौन का
एक महासागर फैला है
तुमसे मुझ तक,मुझसे तुम तक !
दो वीराने द्वीपों-से हम,
अपनी - अपनी सीमाओं में
सिमटे, ठहरे, बद्ध पड़े हैं !

ज्वार और भाटा आने से
इन सुदूर द्वीपों पर भी कुछ
हलचल-सी मच ही जाती है !
शंख, सीपियाँ, सच्चे मोती
कभी भेजना, कभी मँगाना
अनायास हो ही जाता है !

मैं इस तट कुछ लिख देती हूँ
नीलम-से जल की स्याही से
तुम उस तट पर कुछ लिख देना !
लहरों के संग बह आएँगी
लिखी पातियाँ इक दूजे तक
चंदा से कह देना, पढ़ दे !

कितना है आश्चर्य, नियति का
सीमाएँ गढ़ दीं असीम की,
सागर के भी तट होते हैं !
मन भी एक महासागर है
फिर लौटी हैं भाव तरंगें
कुछ प्रतिबंधित क्षेत्रों को छू !

आते-जाते तूफानों में
जाने कितनी दूर रह गईं
मेरे गीतों की नौकाएँ !
खामोशी का गहन समंदर,
दो द्वीपों पर मचे शोर का
कब तक साक्षी बना रहेगा ?