स्वर्ण संध्या, स्वर्ण दिनकर
सब दिशाएँ सुनहरी !
बिछ गई सारी धरा पर
एक चादर सुनहरी !
आसमाँ पर बादलों में
इक सुनहरा गाँव है,
स्वर्ण-से क्षण, स्वर्ण-सा मन,
स्वर्ण-से ये भाव हैं ।
सोनपरियों-सी सुनहरी,
सूर्यमुखियों की छटा ।
पीत वस्त्रों में लिपटकर
सोनचंपा महकता।
सुरभि से उन्मत्त होकर
नाचती पागल पवन !
पीत पत्तों का धरा पर
स्वर्णमय बिछाव है ।
स्वर्ण-से क्षण, स्वर्ण-सा मन,
स्वर्ण-से ये भाव हैं ।
सुनहरे आकाश से अब
स्वर्ण किरणें हैं उतरतीं ।
सुनहरी बालू पे जैसे
स्वर्ण लहरें नृत्य करतीं ।
पिघलता सोना बहे औ'
स्वर्ण - घट रीता रहे !
प्रकृति का या नियति का
यह अजब अभाव है।
स्वर्ण-से क्षण, स्वर्ण-सा मन,
स्वर्ण-से ये भाव हैं ।
हैं हृदय के कोष में,
संचित सभी यादें सुनहली ।
और अँखियों में बसी है
रात पूनम की, रुपहली।
तुम मेरे गीतों को, जलने दो
विरह की अग्नि में !
आग में तपकर निखरना
स्वर्ण का स्वभाव है।
स्वर्ण-से क्षण, स्वर्ण-सा मन,
स्वर्ण-से ये भाव हैं ।
----- ©मीना शर्मा
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 27-11-2020) को "लहरों के साथ रहे कोई ।" (चर्चा अंक- 3898) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत आभार आदरणीया मीना जी
हटाएंआग में तपकर निखरना
जवाब देंहटाएंस्वर्ण का स्वभाव है।
वाह!! प्रिय मीना 👌👌👌👌
स्वर्ण मन से उमड़े ये स्वर्ण भाव अद्भुत हैं। सुंदर शब्द चित्र जो सुनहरी साँझ का स्वर्णिम चित्र प्रस्तुत करता है।। मैं भी कई बार इस तरह की सुनहरी शामों का अवलोकन किया है पर शायद मैं कभी इतने सुंदर शब्दों में उसे ना पिरो पाऊँ। माँ शारदे भावों का ये प्रवाह अक्षुण रखे, मेरी यही कामना है। हार्दिक स्नेह के साथ शुभकामनायें ❤❤🌹🌹
बहुत सारा स्नेह व धन्यवाद प्रिय रेणु
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय ओंकारजी
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय जोशी सर
हटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीया ज्योति जी।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंस्वर्ण संध्या, स्वर्ण दिनकर
जवाब देंहटाएंसब दिशाएँ सुनहरी !
बिछ गई सारी धरा पर
एक चादर सुनहरी !..मन मोह जाता है दी आपका सृजन।
बहुत ही सुंदर सराहनीय।
बहुत बहुत आभार एवं स्नेह प्रिय अनिता
हटाएंस्वर्ण से दिपदिपाते भाव आप्लावित कर रहे हैं । अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार एवं स्वागत आदरणीया अमृताजी
हटाएंस्वर्ण-से क्षण, स्वर्ण-सा मन,
जवाब देंहटाएंस्वर्ण-से ये भाव हैं...
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना 🙏
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया शरद जी। मेरा ब्लॉग फॉलो करने के लिए भी हृदय से धन्यवाद।
हटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार एवं स्वागत आदरणीय यशवंत जी
हटाएंतुम मेरे गीतों को, जलने दो
जवाब देंहटाएंविरह की अग्नि में !
आग में तपकर निखरना
स्वर्ण का स्वभाव है।
स्वर्ण-से क्षण, स्वर्ण-सा मन,
स्वर्ण-से ये भाव हैं ।
लाजवाब गीत...बहुत ही अप्रतिम।
वाह!!!
बहुत बहुत आभार आदरणीया सुधा जी
हटाएंआदरणीया मैम , सब से पहले तो मेरे ब्लॉग पर आ कर मुझे अपना आशीष देने के लिए आपका हृदय अत्यंत आभार और प्रणाम। आपकी यह कविता पढ़ कर होठों पर अनायास ही मुस्कराहट आ जाती है। एक बहुत ही सुंदर शाम की छवि जिसको पढ़ते ही मन में शाम को आकाश में फैली लालिमा और अस्त हो रहे कुछ सुनहरे और कुछ नारंगी सूर्यदेव की छवि आ जाती है। शाम से जुड़े सारे भाव दर्शा दिये आपने ।
जवाब देंहटाएंमैं ने इस कविता को दो बारी पढ़ा , एक बार तो दोपहर में और दुसरी बार अभी शाम को सूर्यास्त देखते देखते, तो मन आनंद से भर गया। इतनी सुंदर रचना के लिए आपका हृदय से आभार और पुनः प्रणाम।
बहुत बहुत आभार एवं स्वागत प्रिय अनंता
हटाएंबहुत सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंप्राकृतिक सौंदर्य के साथ सुंदर रचना।
बहुत बहुत आभार आदरणीया कुसुम कोठारी जी
हटाएंबहुत मधुर रचना...
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई !!!
बहुत बहुत आभार एवं स्वागत आदरणीया शरद जी
हटाएंसोनपरियों-सी सुनहरी,
जवाब देंहटाएंसूर्यमुखियों की छटा ।
पीत वस्त्रों में लिपटकर
सोनचंपा महकता।
सुरभि से उन्मत्त होकर
नाचती पागल पवन !
अहा!
कितना सुन्दर।
बहुत बहुत आभार एवं स्वागत आदरणीया सधुचंद्रजी
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार एवं स्वागत आदरणीया अनिताजी।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार एवं स्वागत सतीशजी।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार एवं स्वागत मनोज जी।
हटाएंबहुत सुन्दर शब्द विन्यास ... भावों की स्पष्टता रचना को गहन और सुन्दरता प्रदान कर रही है ... बाखूबी उतारा है प्राकृति और मन के भावों को ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय दिगंबर सर
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सिन्हा सर
हटाएंसब कुछ स्वर्णिम,
जवाब देंहटाएंक्या सुनहरे भाव हैं।
सादर आभार सर
हटाएंआपकी इस कविता को बहुत विलम्ब से पढ़ा मैंने। अच्छा होता यदि शीघ्र पढ़ लेता। प्रकृति के सौंदर्य का ऐसा अनुपम काव्यमय चित्रण कभी-कभी ही पढ़ने को मिलता है। अभिनन्दन आपका मीना जी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जितेंद्रजी,बहुत बहुत आभार मेरी रचना पर अपनी अनमोल प्रतिक्रिया देने हेतु।
हटाएंअद्भुत काव्य चित्र ! अच्छा लगा एक बार फिर पढ़कर |
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