सुरमई पलकों में सपने,
बुन गई फिर रात,
चुपके से बातें हमारी
सुन गई फिर रात
बाग के हरएक बूटे पर
बिछी कुछ इस तरह,
बाग के हरएक बूटे पर
बिछी कुछ इस तरह,
शबनमी बूँदों में भीगी
नम हुई फिर रात...
रातरानी की महक से
रातरानी की महक से
फिर हवा बौरा गई,
इक गजल महकी हुई सी
लिख गई फिर रात...
सरसराहट पत्तियों की,
सरसराहट पत्तियों की,
कह गई हौले से कुछ,
फिर हुई कदमों की आहट,
रुक गई फिर रात...
मेरी निंदिया को चुराकर,
मेरी निंदिया को चुराकर,
साथ अपने ले गई,
कौन जाने दूर कितनी,
रह गई फिर रात...