रविवार, 26 जून 2016

आखिर किसलिए ?


आखिर किसलिए ?


रख दी गिरवी यहाँ अपनी साँसे
पर किसी को फिकर तो नहीं
बहते बहते उमर जा रही है
आया साहिल नजर तो नहीं....

वक्त अपने लिए ही नहीं था
सबकी खातिर थी ये जिंदगी,
जो थे पत्थर के बुत, उनको पूजा
उनकी करते रहे बंदगी,
जिनकी खातिर किया खुद को रुसवा
उनको कोई कदर तो नहीं....

अपना देकर के चैन-औ-सुकूँ सब
खुशियाँ जिनके लिए थीं खरीदी,
दर पे जब भी गए हम खुदा के
माँगी जिनके लिए बस दुआ ही,
वो ही जखमों पे नश्तर चुभाकर
पूछते हैं, दर्द तो नहीं ?...


रख दी गिरवी यहाँ अपनी साँसे,
पर किसी को फिकर तो नहीं
बहते-बहते उमर जा रही है,
आया साहिल नजर तो नहीं...
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शनिवार, 18 जून 2016

चलते - चलते


चलते - चलते 

चलते - चलते ही
गुनगुना लो तुम,
व्यस्त होकर भी
खिलखिला लो तुम ।

   साथ चलने कॊ भी
   मिले कोई ,
   राह आसान अब
   बना लो तुम ।

उम्र ने कब
किसी को बख्शा है ,
थकते लम्हों का भी
मज़ा लो तुम ।

   न जाने कब
   कोई बिछड़ जाए ,
   साथ जब तक है
   दिल मिला लो तुम ।

चाहे बदले कोई
या ना बदले ,
वक्त है, खुद को
बदल डालो तुम ।
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शुक्रवार, 17 जून 2016

सच्चा सुख


सच्चा सुख

मानव जीवन कुदरत का
अनमोल तोहफा है,
ईश्वर भी नाराज उससे
जो जिंदगी से खफ़ा है ।

जन्म मानव का है,
खुद को भाग्यशाली ही समझ ।
आनंद ले हर पल का,
हर दिन को दीवाली समझ ।

जो मिल रहा है आज,
इक दिन दूर होगा सत्य है ।
सुख - दुःख चले जाते हैं,
उनको याद करना व्यर्थ है ।

याद कर बीते दिनों को,
कुछ बदल पाया कहीं ?
सूखते हैं फूल पर,
बगिया कभी रोई नहीं ।

प्रतिदिन बिछड़ता आसमान
सूर्य, चंद्र, तारों से ।
इक रोज लेनी है विदा,
तुझको भी अपने प्यारों से ।

तू स्वयं आनंद, तू ही प्रेम,
तू ही शांति है ।
सुख मिलेगा दूसरों से,
यह तो केवल भ्रांति है ।
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सोमवार, 13 जून 2016

आनंद की खोज


आनंद की खोज


आओ साथी मिलकर खोजें,
जीवन में आनंद को,
क्रोध, ईर्ष्या, नफरत त्यागें
पाएँ परमानंद को...

जीवन की ये भागादौड़ी,
लगी रही है, लगी रहेगी,
संग अपने कुछ वक्त बिताएँ
पाएँ परमानंद को...

हर रिश्ता है नाजुक ऐसा,
जैसे हो रेशम की डोरी,
रिश्तों को मजबूत बनाएँ
पाएँ परमानंद को...

बड़ा कीमती मानव जीवन,
ईश्वर का उपहार है,
रोगमुक्त हम इसको रखें
पाएँ परमानंद को...

जीवन नाटक, इसमें हम सब
अपना-अपना काम करें,
खुद को हम कर्ता ना समझें
पाएँ परमानंद को...

जीवन पथ पर हमको अपना,
हर कर्तव्य निभाना है,
औरों के हम दोष न देखें
पाएँ परमानंद को...

आओ साथी मिलकर खोजें...
जीवन में आनंद को,
क्रोध, ईर्ष्या, नफरत त्यागें
पाएँ परमानंद को...
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रविवार, 12 जून 2016

बंदी चिड़िया

बंदी चिड़िया

सोने का पिंजरा था,
पिंजरे में चिड़िया थी,
पिंजरा था खिड़की के पास !
फिर भी चिड़िया रहती थी उदास ।

हर सुविधा थी, सुख था,
पानी और दाना था,
लेकिन चिड़िया को तो
बाहर ही जाना था,
लड़ना तूफानों से
खतरे उठाना था,
बंधन खुलने की थी आस !
चिड़िया रहती थी उदास ।

देखकर खुला गगन,
आँखें भर आती थी,
उड़ने की कोशिश में
पंख वो फैलाती थी,
पिंजरे की दीवारों से
सर को टकराती थी,
व्यर्थ थे उसके सभी प्रयास !
चिड़िया रहती थी उदास ।

दिन गुजरते गए,
स्वप्न बिखरते गए,
भूली उड़ना चिड़िया
पंख सिमटते गए,
इक दिन मौका आया
पिंजरा खुला पाया,
फिर भी उड़ने का ना किया प्रयास !
चिड़िया रहती थी उदास ।

दोस्तो, गुलामी की
आदत को छोड़ो तुम,
तोड़ो इस पिंजरे को
हौसले ना तोड़ो तुम,
संघर्ष और मेहनत से
मुँह को ना मोड़ो तुम,
बैठो मत, होकर निराश !!!
जैसे चिड़िया रहती थी उदास ।