जितना बूझूँ, उतना उलझें
एक पहेली जैसे रिश्ते।
स्नेह दृष्टि की उष्मा पाकर,
पिघल - पिघलकर रिसते रिश्ते।
कभी लहू - से सुर्ख रंग के,
कभी हरे हैं हरी दूब - से ।
कभी प्रेम रंग रंगे गुलाबी ,
पल - पल रंग बदलते रिश्ते।
माटी में मिल वृक्ष उगाते
अँखुआए बीजों - से रिश्ते ।
खुशबू बनकर महक रहे हैं,
चंदन जैसा घिसते रिश्ते।
बूँदें बनकर सिमट गए हैं,
नयनों की गीली कोरों में ,
दो मुट्ठी अपनापन पीकर
सारी उम्र बरसते रिश्ते ।
पतझड़ के पत्तों सम झरते,
नवपल्लव से तरु भरने को ।
अपने प्रिय के हित की खातिर
स्वयं मृत्यु को वरते रिश्ते ।