ज्यों अर्जुन को रथ हांक्यो
प्रभु मेरी भी गाड़ी हांकिए
गोपिन को माखन चाख्यो
मेरी रूखी सूखी चाखिए।
लाल कहूँ, गोपाल कहूँ,
नंदलाल कहूँ, क्या नाम धरूँ
मेरो कोई सखा नहीं प्रभु
सखा को नातो राखिए।
करूँ समर्पण क्या मैं तोहे
योग्य तिहारे कछु ना पाऊँ,
मैं अति दीन हीन दुर्बल हूँ
स्वामी, न मोको आँकिए !
मोहिनी मूरत पर बलि जाऊँ
मन मंदिर में तोहि बसाऊँ
नजर ना लग जाए लाला,
इतनो ना सुंदर लागिए !!!
(आज गोपाल की छ्ठीपूजन पर मन के भाव )