जन्माष्टमी के अवसर पर
सबको है अब प्रतीक्षा
कान्हा तेरे आने की ,
बंसी के बजाने की
माखन के चुराने की ।
माँ यशुमति के हाथों
कान्हा बहुत सजे हो ,
मुझको भी मिले मौका
अब तुमको सजाने का ।
तेरी मोहिनी छवि को
लग जाए ना नजर ,
काला लगा दूँ टीका
नटखट जरा ठहर !
इस साँवली सलोनी
सूरत पे वारी जाऊँ ,
ना देखे और कोई
दिल में तुम्हें छुपाऊँ ।
ये स्वार्थ है या लालच
चाहे जो भी नाम दे दो ,
पर कुछ पलों को अपनी
सेवा का काम दे दो ।
व्यापे ना मोह कोई
मोहन तुम्हीं बचाना ,
अर्जुन के सारथी थे
मेरी नाव भी चलाना ।
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