दूर गगन इक तारा चमके
मेरी ओर निहारे,
मुझको अपने पास बुलाए
चंदा बाँह पसारे ।
पंछी अपने गीतों की
दे जाते हैं सौगातें,
वृक्ष-लता सपनों में आ
करते हैं मुझसे बातें ।
झरने दुग्ध धवल बूँदों से
मुझे भिगो देते हैं,
अपने संग माला में मुझको
फूल पिरो लेते हैं ।
कोयलिया कहती है मेरे
स्वर में तुम भी बोलो,
नदिया कहती, शीतल जल में
अपने पाँव भिगो लो ।
सारी पुष्प-कथाएँ
तितली-भौंरे बाँच सुनाते,
नन्हे-से जुगनू तम में
आशा की ज्योति जगाते ।
लहरें सागर की देती हैं
स्नेह निमंत्रण आने का,
पर्वत शिखर सदा कहते हैं
भूलो दर्द जमाने का ।
माँ की तरह प्रकृति मुझ पर
ममता बरसाती है,
अपने हृदय लगाकर मुझको
मीठी नींद सुलाती है।