इसे मान लो चाहे बगावत हमारी
कि तुमसे ही करनी है शिकायत तुम्हारी।
मुहब्बत अगर तुमसे निभाई है हमने
तो नाराजगी भी है अमानत तुम्हारी ।
कभी ना कहा 'प्यार करते हैं तुमसे '
हमेशा ही की है खिलाफत हमारी ।
ये अहसान मानो, छिपा करके दिल में
करी है हमीं ने हिफाजत तुम्हारी ।
मेरी नाखुशी पर क्यूँ तुम मुस्कुराए
अभी भी ना बदली है आदत तुम्हारी ।
हँसाकर रुलाना, सताकर मनाना,
कोई क्यूँ सहे हर शरारत तुम्हारी ?
कोई क्यूँ सहे हर शरारत तुम्हारी ?
नहीं अब भरोसा, है हर बात नकली
मिलावट, मिलावट, मिलावट है सारी ।