सोमवार, 10 मार्च 2025

जहरी मीडिया

आग लगने की तके है 
राह जहरी मीडिया
घी लिए तैयार बैठा, 
वाह जहरी मीडिया !

धर्म, जाति, कौम के 
रंग में रंगे हर रूह को
विषबुझे तीरों से करता
वार जहरी मीडिया !

चैनलों के कटघरे में 
हैं खड़े राम औ रहीम
कभी वकील है, कभी 
गवाह जहरी मीडिया !

हल निकल सकता जहाँ 
खामोशियों से खुद-ब-खुद
चीखता है बेवजह, 
बेपनाह जहरी मीडिया !

बस दूध के उबाल सा 
उफने है चंद रोज,
पकड़े है फिर अगली खबर 
की राह जहरी मीडिया !

जनता छली जाती रही , 
सच की तलाश में
देता रहा बस मुफ्त की 
सलाह जहरी मीडिया !



शनिवार, 8 मार्च 2025

मैं तुमसे इत्तेफाक नहीं रखती !

ये जो तुम मुझे
भेज रही हो शुभकामनाएँ
महिला दिवस की,
तुम कौन हो ?
मैं तुम्हें नहीं जानती !
मैंने तुमसे कभी 
सहानुभूति नहीं पाई
सहवेदना/ संवेदना तो दूर !
ओ स्त्री, तुम हो कौन ?
माँ, बहन, भाभी, सास
देवरानी, जेठानी, ननद
मेरी सहकर्मी
या मेरी महिला बॉस ?
या मेरी अड़ोसी - पड़ोसी
सखी - सहेली ?
क्या तुमने नहीं बनाई मेरी बातें,
नहीं काटीं मेरी जड़ें ?
नहीं की मेरी चुगली ?
कैसे मान लूँ कि ये मेरा दिवस है
या हमारा दिवस है ?
'हम' शब्द तो उनके लिए
ठीक रहता है जो जुड़े हों
हम तो बँटे ही रहे हमेशा
साथ भी आए कभी, तो 
स्वार्थ के धागे से ही जुड़े थे
कैसा महिला दिवस, कैसी शुभकामना ?
माफ करना ओ स्त्री,
मैं तुमसे इत्तेफाक नहीं रखती !

( ये मेरे अपने विचार हैं, इसके अपवाद भी हो सकते हैं )