आग लगने की तके है
राह जहरी मीडिया
घी लिए तैयार बैठा,
घी लिए तैयार बैठा,
वाह जहरी मीडिया !
धर्म, जाति, कौम के
रंग में रंगे हर रूह को
विषबुझे तीरों से करता
विषबुझे तीरों से करता
वार जहरी मीडिया !
चैनलों के कटघरे में
हैं खड़े राम औ रहीम
कभी वकील है, कभी
कभी वकील है, कभी
गवाह जहरी मीडिया !
हल निकल सकता जहाँ
खामोशियों से खुद-ब-खुद
चीखता है बेवजह,
बेपनाह जहरी मीडिया !
बस दूध के उबाल सा
उफने है चंद रोज,
पकड़े है फिर अगली खबर
पकड़े है फिर अगली खबर
की राह जहरी मीडिया !
जनता छली जाती रही ,
सच की तलाश में
देता रहा बस मुफ्त की
देता रहा बस मुफ्त की
सलाह जहरी मीडिया !