मन की बंजर भूमि पर,
कुछ बाग लगाए हैं !
मैंने दर्द को बोकर,
अपने गीत उगाए हैं !!!
रिश्ते-नातों का विष पीकर,
नीलकंठ से शब्द हुए !
स्वार्थ-लोभ इतना चीखे कि
स्नेह-प्रेम निःशब्द हुए !
आँधी से लड़कर प्राणों के,
दीप जलाए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर अपने....
अपनेपन की कीमत देनी,
होती है अब अपनों को !
नैनों में आने को, रिश्वत
देती हूँ मैं सपनों को !
साँसों पर अभिलाषाओं के
दाँव लगाए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर अपने....
नेह गठरिया बाँधे निकला,
कौन गाँव बंजारा मन !
जाना कहाँ, कहाँ जा पहुँचा,
ठहर गया किसके आँगन !
पागल प्रीत लगा ना बैठे,
लोग पराए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर,
अपने गीत उगाए हैं !!!
कुछ बाग लगाए हैं !
मैंने दर्द को बोकर,
अपने गीत उगाए हैं !!!
रिश्ते-नातों का विष पीकर,
नीलकंठ से शब्द हुए !
स्वार्थ-लोभ इतना चीखे कि
स्नेह-प्रेम निःशब्द हुए !
आँधी से लड़कर प्राणों के,
दीप जलाए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर अपने....
अपनेपन की कीमत देनी,
होती है अब अपनों को !
नैनों में आने को, रिश्वत
देती हूँ मैं सपनों को !
साँसों पर अभिलाषाओं के
दाँव लगाए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर अपने....
नेह गठरिया बाँधे निकला,
कौन गाँव बंजारा मन !
जाना कहाँ, कहाँ जा पहुँचा,
ठहर गया किसके आँगन !
पागल प्रीत लगा ना बैठे,
लोग पराए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर,
अपने गीत उगाए हैं !!!
बेहतरीन रचना मीना जी
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुन्दर रचना.....👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन मीना जी गहराई तक उतरती अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुंंदर रचना।
जवाब देंहटाएंअपनेपन की कीमत देनी,
जवाब देंहटाएंहोती है अब अपनों को !
नैनों में आने को, रिश्वत
देती हूँ मैं सपनों को !
बहुत खूब .....
बहुत सुंदर भाव की रचना
जवाब देंहटाएंरिश्ते-नातों का विष पीकर,
जवाब देंहटाएंनीलकंठ से शब्द हुए !
स्वार्थ-लोभ इतना चीखे कि
स्नेह-प्रेम निःशब्द हुए !
बेहद लाजवाब, अद्भुत अप्रतिम रचना...
अपनेपन की कीमत देनी,
जवाब देंहटाएंहोती है अब अपनों को !
नैनों में आने को, रिश्वत
देती हूँ मैं सपनों को !
...दिल को छूते कटु सत्य के अहसास। उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सूरदास जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मीना जी !
जवाब देंहटाएंआंधी-तूफानों में, हिम्मत रख, उनके संग बह लेना,
ऐसे गीत उगाने हों तो, दर्द और भी, सह लेना.
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/118.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंस्वार्थ-लोभ इतना चीखे कि
जवाब देंहटाएंस्नेह-प्रेम निःशब्द हुए !
बेहद लाजवाब,
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह री कल्पनकल्पना, अत्युत्तम.
जवाब देंहटाएंसभी का हृदयपूर्वक आभार । आप सबके सहयोग की मेरे लेखन को सुधारने में बहुत बड़ी भूमिका रही है।
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