कुछ इकतरफा रिश्ते बनते हैं
किसी नदी के एक किनारे, चलते-चलते
एक दिशा में ही, सूरज के उगते-उगते
एक तरफ ही रोज, चाँद के ढलते-ढलते
ये इकतरफा रिश्ते भी बन जाते हैं.....
तन्हा-तन्हा से लम्हे भी कट जाते हैं
इंतजार में थमते, बहते, तरसे-तरसे
नयन भरे जैसे बदरा अब बरसे, बरसे
कोई गुजरा अभी इधर से, क्या तुम ही थे ?
यही सोचते तन्हा लम्हे कट जाते हैं....
अल्फ़ाज़ जुबां तक आते आते रुक जाते हैं
कलम उठाकर उनको लिखना भी चाहूँ,
तो चिड़िया बनकर उड़ जाते हैं
इधर उधर को मुड़ जाते हैं, छुप जाते हैं
अल्फ़ाज़ जुबां तक आते-आते रुक जाते हैं.....
कोई बेगाना जब अपना-सा लगता है,
मन करता है, काटूँ अपने दिल से टुकड़े,
और रोप दूँ उसके दिल में,
ज्यों गुलाब की कलमें बोती हूँ बारिश में !
कोई बेगाना जब अपना सा लगता है....
किसी नदी के एक किनारे, चलते-चलते
एक दिशा में ही, सूरज के उगते-उगते
एक तरफ ही रोज, चाँद के ढलते-ढलते
ये इकतरफा रिश्ते भी बन जाते हैं.....
तन्हा-तन्हा से लम्हे भी कट जाते हैं
इंतजार में थमते, बहते, तरसे-तरसे
नयन भरे जैसे बदरा अब बरसे, बरसे
कोई गुजरा अभी इधर से, क्या तुम ही थे ?
यही सोचते तन्हा लम्हे कट जाते हैं....
अल्फ़ाज़ जुबां तक आते आते रुक जाते हैं
कलम उठाकर उनको लिखना भी चाहूँ,
तो चिड़िया बनकर उड़ जाते हैं
इधर उधर को मुड़ जाते हैं, छुप जाते हैं
अल्फ़ाज़ जुबां तक आते-आते रुक जाते हैं.....
कोई बेगाना जब अपना-सा लगता है,
मन करता है, काटूँ अपने दिल से टुकड़े,
और रोप दूँ उसके दिल में,
ज्यों गुलाब की कलमें बोती हूँ बारिश में !
कोई बेगाना जब अपना सा लगता है....
बहुत सुन्दर सृजन मीना जी । गुलाब की कलम और दिल के टुकड़े की कल्पना अद्भुत और अद्वितीय ।
जवाब देंहटाएंकोई बेगाना जब अपना-सा लगता है,
जवाब देंहटाएंमन करता है, काटूँ अपने दिल से टुकड़े,
और लगा दूँ उसके दिल में,
ज्यों गुलाब की कलमें बोती हूँ बारिश में
भावनाओं और संवेदनाओं से भरी आपकी रचना हृदय को इसतरह से छू जाती है कि उसपर प्रतिक्रिया के लिये शब्द नहीं।
प्रणाम दी, आपको और आपकी लेखनी को।
लाज़वाब 👌
जवाब देंहटाएंसुंदर.
जवाब देंहटाएंअल्फ़ाज़ जुबां तक आते आते रुक जाते हैं
जवाब देंहटाएंकलम उठाकर उनको लिखना भी चाहूँ,
तो चिड़िया बनकर उड़ जाते हैं
बहुत खूब.... ,लाजबाब रचना मीना जी ,सादर नमन
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना बुधवार ६ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
कोई बेगाना जब अपना-सा लगता है,
जवाब देंहटाएंमन करता है, काटूँ अपने दिल से टुकड़े,
और रोप दूँ उसके दिल में,
ज्यों गुलाब की कलमें बोती हूँ बारिश में!
दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, मीना दी।
बेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंउगाए गए प्यार से कहीं बेहतर है रोपे जाना प्यार।
जवाब देंहटाएंइसमें हक़ है
इसमें अधिकार है
और इसमें देर सबेर कोपलें निकलनी ही निकलनी है।
लाजवाब रचना।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-11-2019) को "दोनों पक्षों को मिला, उनका अब अधिकार" (चर्चा अंक 3516) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
iwillrocknow.com
बेहतरीन रचना आदरणीया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन.
जवाब देंहटाएंसादर
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब...
अल्फ़ाज़ जुबां तक आते आते रुक जाते हैं
कलम उठाकर उनको लिखना भी चाहूँ,
तो चिड़िया बनकर उड़ जाते हैं
ये इकतरफे रिश्ते बहुत तड़फाते हैं...
रिश्ते यूँ ही बन जाते हैं ... एक तरफ़ा होनेसे कुछ फर्क नहीं होता ... दिल जहाँ माने वहीँ ठीक ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ... अपने ये ब्लॉग फिर लिखना शुरू किया पता नहीं चल पाया ...
बहुत बहुत शुक्रिया सर। इस ब्लॉग को सिर्फ कविताओं और ब्लॉग प्रतिध्वनि को गद्य रचनाओं के लिए रिजर्व रखने का सोच रही हूँ। हालांकि फिलहाल लेखन बंद सा हो गया है। आपके कमेंट को पढ़कर अच्छा लगा।
हटाएं