गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

खो गई...'वह'

टुकड़े-टुकड़े जिंदगी में,
जिंदगी को खोजती है ।
बँट गई हिस्सों में,
खुद को खोजती है ।

वह सहारा, वह किनारा,
और मन का मीत भी !
आरती वह, वही लोरी,
वही प्रणयगीत भी ।

वह पूजाघर का दीप,
रांगोली, वंदनवार !
वह झाड़ू, चूल्हा, चौका,
वही छत, नींव, दीवार !!

वृद्ध नेत्रों के लिए
इक रोशनी है वह,
और बच्चों के लिए
जादुई जिनी है वह ।

प्रियतम की पुकार पर
प्रियतमा वह बन गई,
दूर करने हर अँधेरा
खुद शमा वह बन गई !

पत्नी, माँ, भाभी, बहू,
क्या क्या नहीं वह ?
और यह भी सत्य,
इनमें खो गई...'वह' ।।

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