बुधवार, 4 अक्टूबर 2017

जिंदगी हर पल कुछ नया सिखा गई....



जिंदगी हर पल कुछ नया सिखा गई,
ये दर्द में भी हँस कर जीना सिखा गई ।

जब चुप रहे, तो जिंदगी बोली कि कुछ कहो
जब बोलने लगे तो, चुप रहना सिखा गई ।

यूँ मंजिलों की राह भी आसान नहीं थी,
बहके कदम तो फिर से सँभलना सिखा गई ।

काँटे भी कम नहीं थे गुलाबों की राह में,
खुशबू की तरह हमको बिखरना सिखा गई ।

अच्छाइयों की आज भी कीमत है जहाँ में,

दामन को दुआओं से ये भरना सिखा गई ।।

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ६ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बहके कदमों को फिर से सम्हलना लिखा गई। वाह बेहतरीन।

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  3. "जब चुप रहे, तो जिंदगी बोली कि कुछ कहो
    जब बोलने लगे तो, चुप रहना सिखा गई ।"

    वाह! बहुत खूब...।
    सत्य के करीब।

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  4. आप सभी ने ब्लॉग पर आकर मेरा उत्साह बढ़ाया, इसके लिए आप सबका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ।

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  5. जन के दिलों में समता जगा दे।
    भेद भुलाकर विषमता भगा दे।
    कटुताओं को जड़ से मिटा दे।
    हे जगदीश्वर एेसी दुआ दे।
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन

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