बचपन को कर लूँगी याद रे !
बाबुल मेरे !
तेरे कलेजे से लग के ।।
नन्हें से पाँवों में, चाँदी की पायल,
पायल के घुँघरू, घुँघरू की रुनझुन !
रुनझुन मचलती थी, जब तेरे आँगन,
छोटी - छोटी खुशियों की बात रे !
बचपन को कर लूँगी याद रे !
बाबुल मेरे !
तेरे कलेजे से लग के ।।
अम्मा से कहना, तरसे हैं अँखियाँ,
अँखियों में सपने, सपनों में सखियाँ,
सावन के झूले, मीठी सी बतियाँ !
पीहर की ठंडी सी छाँव रे !
बचपन को कर लूँगी याद रे !
बाबुल मेरे !
तेरे कलेजे से लग के ।।
भैया को बहना की याद ना आए,
कैसे मगर, बहना बिसराए !
इक भैया मोरा, गया है बिदेसवा,
दूजे की नयनों को आस रे !
बचपन को कर लूँगी याद रे !
बाबुल मेरे !
तेरे कलेजे से लगके ।।
सावन के बहाने, बुला भेजो बाबुल !!!
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवारीय विशेषांक १५ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत ही सुन्दर सावन गीत...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (5 -8 -2020 ) को "एक दिन हम बेटियों के नाम" (चर्चा अंक-3784) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बेहद खूबसूरत रचना मीना जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत खूबसूरत दीदी🙏🏻🙏🏻❤️
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रवि
हटाएंभैया को बहना की याद ना आए,
जवाब देंहटाएंकैसे मगर, बहना बिसराए !
इक भैया मोरा, गया है बिदेसवा,
दूजे की नयनों को आस रे !//
बाबुल से बहुत ही मर्मस्पर्शी गुहार प्रिय मीना।एक समय था जब मोबाइल फोन और संपर्क के इतने साधन नहीं थे तब बाबुल की बिटिया को मायके के लिये कितनी व्याकुलता रहती थी ये हमने अपनी दादी,नानी,माँ इत्यादि से खूब सुना है पर आज भी संपर्क भले रोज रह्ता हो दूरियाँ तो फिर भी दूरियाँ हैं।एक बिटिया के मन के कोमल भावों को शब्द देने के लिए हार्दिक आभार और बधाई।🌺🌺🌹🌹
सस्नेह आभार प्रिय रेणु
हटाएंसभी को बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमीना दी,ससुराल चाहे कितना भी संपन्न क्यों न हो और ससुराल में चाहे सब लोग बहुत प्यार हो लेकिन बाबुल की याद कोई भी महिला नहीं भुला सकती। भूले भी कैसे? पूरा बचपन वहां जो बिताया! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवाह!! मीना जी ,बहुत खूबसूरत सृजन ।
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