जितना ज्यादा मन रोएगा
उतना ओंठ हँसेगे जी
तुम अपने जीवन को जी लो
हम अपना जी लेंगे जी !
बच्चों जैसा पाया हमने
कुछ बूढ़ों का चाल चलन
दिखा खिलौना अधिक रंगीला
अब हम वो ही लेंगे जी !
दिखा रहे हैं जो हमदर्दी
वो हैं दर्द के सौदागर
तड़पोगे तुम , ये तो अपना
सौदा बेच चलेंगे जी !
उफनी नदिया, तो घर उजड़े
पर मानव की जिद देखो,
जब उतरेगी बाढ़, वहीं पर
फिर से लोग बसेंगे जी !
इक थैली के चट्टे बट्टे
छिपे हुए रुस्तम हैं सब
आरोपों प्रत्यारोपों के,
जमकर तीर चलेंगे जी !
Wonderful.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय अयंगर सर
हटाएंHindi
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर।
हटाएंजितना ज्यादा मन रोएगा
जवाब देंहटाएंउतना ओंठ हँसेगे जी
तुम अपने जीवन को जी लो
हम अपना जी लेंगे जी !
वाह!! अपना अपना जीवन सबको जीना है,दुख के आंसू हंसते हंसते पीना है
बहुत बहुत आभार आदरणीया अनिता दीदी
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०६-०८-२०२३) को 'क्यूँ परेशां है ये नज़र '(चर्चा अंक-४६७५ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सस्नेह धन्यवाद प्रिय अनिता
हटाएंक्या बात है दी,सरल सहज भावपूर्णमन से लिखी आपकी अभिव्यक्ति सदैव मन छू जाती है-----
जवाब देंहटाएंबाधाओं को जीत सको गर जीवन फिर मुस्कान है।
मन आक्रोशित हाथ में पत्थर शीशों से बने मकान है
भाँति भाँति के लोग यहाँ अलग-अलग पहचान है,
साँसों का ही मोल नहीं बस मरना बेहद आसान है।
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बहुत समय बार आपकी रचना पढ़ने मिली,बहुत अच्छी लगी।
सप्रेम प्रणाम दी।
सादर।
बहुत ही सुंदर काव्यात्मक अभिव्यक्ति, आपकी टिप्पणी भी हृदय को प्रसन्न कर देती है प्रिय श्वेता। बहुत सा स्नेह।
हटाएंसहज ही मुख पर मुस्कान ला देने वाली पंक्तियाँ ..
जवाब देंहटाएंसस्नेह धन्यवाद प्रिय अंकित
हटाएंउफनी नदिया, तो घर उजड़े
जवाब देंहटाएंपर मानव की जिद देखो,
जब उतरेगी बाढ़, वहीं पर
फिर से लोग बसेंगे जी !
बहुत ही सटीक सार्थक एवं सारगर्भित...
हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब सृजन।
सस्नेह धन्यवाद सुधाजी।
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