शुक्रवार, 24 मई 2019

राधा का मैं मौन विरह हूँ !

ना तो मैं तेरे बागों की चिड़िया,
ना बचपन की गुड़िया रे !
ना मैं मैया, ना मैं बिटिया,
ना मुँहबोली बहना रे !
मैं तेरे गाँव के वन की बुलबुल,
गाऊँ आधी रात रे !
मैं तेरी कुइयाँ का पानी,
बरसूँगी बन बरसात रे !!!

ना तेरे पौधों की कच्ची कली,
ना तेरी लगाई बेल रे !
ना तेरे मंदिर की ज्योति,
ना कोई तुझसे मेल रे !
मैं तो तेरे आँगन की तुलसां,
फूलूँ कातिक मास रे !
मैं तो तेरे फूलों की खुशबू,
कोमल सा आभास रे !!!

ना मैं तेरे, बचपन की साथी,
ना तेरी हमराज रे !
ना मैं गीत तेरी बंसी का,
ना तेरे सुर का साज रे !
ना मैं स्वप्न हूँ, ना ही कल्पना,
मैं तो बस विश्वास रे !
राधा का मैं मौन विरह हूँ
सीता का वनवास रे !!!

नहीं स्वामिनी, ना मैं दासी
कैसी अजब पहेली रे !
ना तुझसे कोई रिश्ता नाता
ना मैं सखी - सहेली रे !!!






19 टिप्‍पणियां:

  1. ना मैं स्वप्न हूँ, ना ही कल्पना,
    मैं तो बस विश्वास रे !
    राधा का मैं मौन विरह हूँ
    सीता का वनवास रे !!!
    बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना प्रिय मीना बहन | एकदम निशब्द क्र देती है हर पंक्ति | अनाम और अप्राप्य रिश्ते की यही परिभाषा है शायद | यही हर राधा का मौन विरह है | शुभकामनायें सखी इस सुंदर मन को छूते सृजन के लिए | सस्नेह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बस एक प्रयास किया है लोकगीत शैली में लिखने का रेणु बहन...आपके स्नेह के लिए आभार कैसे कहूँ ?

      हटाएं
    2. आपका प्रयास सफल है। लोक शब्द बड़े मधुर लग रहे हैं।

      हटाएं
  2. ना तेरे पौधों की कच्ची कली,
    ना तेरी लगाई बेल रे !
    ना तेरे मंदिर की ज्योति,
    ना कोई तुझसे मेल रे !
    मैं तो तेरे आँगन की तुलसां,
    फूलूँ कातिक मास रे !
    दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना,मीना दी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपके सहयोग और लगातार साथ के लिए धन्यवाद शब्द काफी नहीं होगा। बहुत सा स्नेह आपको ज्योति जी।

      हटाएं
  3. नहीं स्वामिनी, ना मैं दासी
    कैसी अजब पहेली रे !
    ना तुझसे कोई रिश्ता नाता
    ना मैं सखी - सहेली रे !!!

    कुछ बदनसीबों की जीवन गाथा विचित्र होती है। आपकी यह रचना ऐसी अनुभूति हो रही थी कि मुझ जैसे यतीमों पर तो कहीं नहीं लिखी गयी है।
    प्रणाम मीना दी।
    आपकी रचनाएँ मेरी दृष्टि से ब्लॉक जगत में श्रेष्ठ है। स्वयं को मैं उसमें ढ़ूंढने लगता हूँ कभी- कभी तो।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शशिभैया, आप मेरी रचनाओं के भाव से खुद को जोड़ पाते हैं यह जानकर अच्छा लगा। पर अपने आपको बार बार यतीम और बदनसीब मत कहिए।

      हटाएं
  4. जी नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३१ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह ! लाज़बाब अभिव्यक्ति प्रिय मीना बहन
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. ना मैं स्वप्न हूँ, ना ही कल्पना,
    मैं तो बस विश्वास रे !
    राधा का मैं मौन विरह हूँ
    सीता का वनवास रे !!! बेहतरीन रचना मीना जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर, सस्नेह आभार प्रिय अनुराधा बहन।

      हटाएं
  7. निशब्द हूं मीना जी जैसे कोई निर्झर दर्द लिये बह रहा हो पर सुखद कर्ण प्रिय संगीत फज़ाओं में बिखेरता हुवा।
    अप्रतिम सौंदर्य लालित्य लिये असाधारण भावाभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  8. नहीं स्वामिनी, ना मैं दासी
    कैसी अजब पहेली रे !
    ना तुझसे कोई रिश्ता नाता
    ना मैं सखी - सहेली रे
    बहुत ही सुंदर रचना मीना जी ,एक एक शब्द अंतर्मन को छूटा जा रहा था ,बार बार पढ़कर भी फिर पढ़ने का दिल करता हैं ,लाज़बाब

    जवाब देंहटाएं
  9. अंतर्मन को छूती बहुत सुंदर रचना..

    जवाब देंहटाएं