श्वास - श्वास, दिवस - मास रीतते हैं हम,
हाँ, रीतते हैं हम !
साल नहीं बीतता है, बीतते हैं हम !
बरखा में बूँद - बूँद कर, टपक रही है उम्र,
चुभती हवा में शिशिर की, सिहर रही है उम्र ।
फिर बसंत आगम पर रीझते हैं हम,
साल नहीं बीतता है, बीतते हैं हम !
जीना तो कहीं खो गया पाने की होड़ में,
जीवन था एक, बीत गया जोड़-तोड़ मे ।
अब भी कहाँ खुशियों का गणित सीखते हैं हम,
साल नहीं बीतता है, बीतते हैं हम !
कसमों से भरी टोकरी, वादों का पिटारा,
है अनुभवों की पोटली , यादों का पसारा ।
चंदन की तरह जग के लिए झीजते हैं हम !
साल नहीं बीतता है, बीतते हैं हम !
गिनते हैं लोग, उम्र के कितने बरस जिए,
गिनते नहीं, उधड़े हुए कितने जखम सिए ।
प्रेम की बरसात में, क्या भीगते हैं हम ?
साल नहीं बीतता है, बीतते हैं हम !