रविवार, 13 नवंबर 2022

पनघट

यादों के सब पन्ने उड़कर

बिखरे जीवन सरिता तट पर,

सारी सखियाँ लौट गईं,

मैं एकाकी सूने पनघट पर !


इस पनघट पर मेल हुआ था,

हँसी - खुशी का खेल हुआ था।

साँझ हुई, पनघट के साथी

अपनी - अपनी राह चल दिए।

मैं पनघट को छोड़ ना पाऊँ,

अपना नाता तोड़ ना पाऊँ।

मेरे टूटे हृदय - कलश के

टुकड़े छिटके हैं पनघट पर !

सारी सखियाँ लौट गईं,

मैं एकाकी सूने पनघट पर !


पदचिन्हों पर किए समर्पित,

पारिजात के पुष्प निशा में।

भोर हुई, पदचिन्ह मिट गए,

खोजूँ भी तो, कौन दिशा में ?

पनघट तो फिर से चहकेगा,

फिर कोई राही बहकेगा,

किंतु मेरे नयनों की गागर

रिक्त रह गई इस पनघट पर।

सारी सखियाँ लौट गईं,

मैं एकाकी सूने पनघट पर !



15 टिप्‍पणियां:

  1. स्मृतियों के कोमल भावों से बुनी सुंदर रचना

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 14 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (१४-११-२०२२ ) को 'भगीरथ- सी पीर है, अब तो दपेट दो तुम'(चर्चा अंक -४६११) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  4. वाह! अच्छे चित्र हैं रचना में

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  5. मैं पनघट को छोड़ ना पाऊँ,

    अपना नाता तोड़ ना पाऊँ।

    मेरे टूटे हृदय - कलश के

    टुकड़े छिटके हैं पनघट पर !

    सारी सखियाँ लौट गईं,

    मैं एकाकी सूने पनघट पर !
    जिस पनघट में मेल हुआ हो उसे छोड़ पाना कहाँ सम्भव है...
    हमेशा की तरह लाजवाब सृजन ।

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  6. ंजीवन के सत्य का यदि ऐसी मधुरतम अभिव्यक्ति हो तो सहज ही स्वीकार है... एकाकी पनघट की। अति सुन्दर कृति।

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  7. सारी सखियाँ लौट गईं,
    मैं एकाकी सूने पनघट पर !

    यही होता है सखी किसी पल हर व्यक्ति ऐसा ही अनुभव करता है भाव प्रवण रचना अध्यात्म का गूढ़ पुट लिए।

    अभिनव, अभिराम सृजन।

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  8. इस पनघट पर मेल हुआ था,
    हँसी - खुशी का खेल हुआ था।
    साँझ हुई, पनघट के साथी
    अपनी - अपनी राह चल दिए।
    मैं पनघट को छोड़ ना पाऊँ,
    अपना नाता तोड़ ना पाऊँ।
    आपका सृजन चिन्तन को प्रेरित करता है मीना जी ! अभिनव कृति । सादर सस्नेह वन्दे !

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  9. पनघट तो फिर से चहकेगा,

    फिर कोई राही बहकेगा,

    किंतु मेरे नयनों की गागर

    रिक्त रह गई इस पनघट पर।

    "महफिलें तो नित नई सजती रहेंगी,मगर हम अपनी यादों के महफ़िल से कहाँ निकल पाते हैं।
    बड़े दिनों बाद आपकी रचना को पढ़ने का सौभाग्य मिला,बेहद ख़ुशी हुई मीना जी,
    सच कहा आपने सभी सखियाँ एक-एक कर छूटती जा रही है,लेकिन जो बची है उन्ही का साथ निभा ले
    सादर नमन आपको

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  10. पनघट की स्मृतियों के बहाने जीवन का एक जीवन्त और सशक्त शब्द चित्र प्रिय मीना! सच है---
    पनघट तो फिर से चहकेगा,
    फिर कोई राही बहकेगा,/////
    जिन्दगी के मेले हमेशा रह्ते हैं पर चेहरे बदलते रह्ते है।यही इस निष्ठुर जीवन का कडवा सच है।

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