रविवार, 7 जुलाई 2019

ग़ाफ़िल नहीं हूँ !


नील नभ की छाँह में ठहरा पथिक हूँ,
मैं भटकता दर-ब-दर, बादल नहीं हूँ।

एक अंधी दौड़ है, ये दौर अंधा !

मैं किसी भी दौड़ में शामिल नहीं हूँ।

समझता हूँ, क्या खिलाफ़त, क्या मुहब्बत

बावरा तो हूँ मगर पागल नहीं हूँ। 

देखता हूँ मैं खुली आँखों से सपने,

पर स्वप्न में खोया रहूँ, ग़ाफ़िल नहीं हूँ।

मील का पत्थर सही, राहों में तो हूँ,

ये नहीं मुद्दा, कि मैं मंज़िल नहीं हूँ।

इक थके पंछी ने तूफां से कहा यूँ,

फिर उड़ूँगा, शिथिल हूँ, घायल नहीं हूँ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तूति, मीना दी।

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  2. फिर उड़ूँगा, शिथिल हूँ, घायल नहीं हूँ।
    सार्थक संदेश दी..

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 04 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. पंछी के जुझारूपन को बताती अप्रतिम रचना।

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  5. वाह! बेहद उम्दा 👌
    सादर प्रणाम आदरणीया दीदी जी 🙏

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