मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

फिर कुछ प्रश्न......

चूरा चूरा चाँद हो गया,
टुकड़े टुकड़े सारे तारे !
मेरे पास यही दोनों थे,
अब तुमको मैं क्या दूँ ? बोलो !!!

निर्वासित शापित शब्दों में,
इतनी शक्ति नहीं बची है,
अब भी तुमसे प्यार मुझे,
ये किन शब्दों में बोलूँ ? बोलो !!!

बेनामी रिश्ते की पीड़ा
पंछी और पेड़ से पूछो,
दुनिया के रस्मो रिवाज में
इस रिश्ते को भूलूँ ? बोलो !!!

इस दिल ने क्यों मान लिया हक
किसी गैर की धड़कन पर,
कैद कहीं इस दिल को कर दूँ
या अधिकार सँजो लूँ ? बोलो !!!

अगर कहीं तुम मिल जाओ तो
कह दूँ जो मुझको कहना है 
या फिर उस वादे की खातिर
अपने नयन भिगो लूँ ? बोलो !!!

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9 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. प्रेम की कोई भाषा हुई है भला?? बोलो
    हक़ दिया जाता है और
    जबरदस्ती से छीन भी लिया जाता।
    वाह
    बहुत प्यारी रचना।
    नई रचना- सर्वोपरि?

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  3. बेनामी रिश्ते की पीड़ा
    पंछी और पेड़ से पूछो,
    दुनिया के रस्मो रिवाज में
    इस रिश्ते को भूलूँ ? बोलो !!!
    प्रिय मीना बहन, अनुराग के शिखर को स्पर्श करती रचना जिसमें विचलित मन की विवशता शब्द शब्द मुखर हो रहे हैं । बहुत बहुत शुभकामनायें और बधाई आपको । 🙏🙏💐💐💐💐💐

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