सोमवार, 2 अक्टूबर 2017

बापू

बापू
--- कविवर्य सुमित्रानंदन पंत --

चरमोन्नत जग में जबकि आज विज्ञानज्ञान,
बहु भौतिक साधन, यंत्रयान, वैभव महान,

सेवक हैं विद्युत, वाष्पशक्ति, धनबल नितांत,
फिर क्यों जग में उत्पीड़न, जीवन यों अशांत?

मानव ने पाई देश-काल पर जय निश्चय
मानव के पास नहीं मानव का आज हृदय !

है श्लाघ्य मनुज का भौतिक संचय का प्रयास,
मानवी भावना का क्या पर उसमें विकास ?

चाहिए विश्व को आज भाव का नवोन्मेष,
मानवउर में फिर मानवता का हो प्रवेश !

बापू ! तुम पर हैं आज लगे जग के लोचन,
तुम खोल नहीं पाओगे मानव के बंधन ?

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