पतझड़ के मौसम में झड़ते
पात - पात की पीड़ाओं को,
झंझा की झकझोरों से
झरने वाली कच्ची कलियों को,
लिखने वाले खूब लिख गए,
मैं पतझड़ का अंत लिखूँगी !
मैं तो पुनः बसंत लिखूँगी !
आग नफरतों की जब फैली
दावानल में देश जल उठा,
राजसभा जनसभा, फर्क क्या
चीरहरण का दृश्य वही था ।
अब पांचाली के हाथों से
दुर्योधन का अंत लिखूँगी !
मैं तो पुनः बसंत लिखूँगी !
हर युग में पैदा होते हैं
रावण, कंस और दुःशासन,
कुछ जनता का शोषण करते
कुछ जनता पर करते शासन !
उनका महिमा-मंडन ना कर,
दुष्टों का विध्वंस लिखूँगी ।
मैं तो पुनः बसंत लिखूँगी !
बंसी के वह मृदुल मधुर स्वर
जो गूँजे थे यमुना तट पर
मेरे स्मृति पटल पर अंकित
कृष्ण सखी के बजते नुपूर
महाभारत तो कई लिख गए
मैं तो केवल कृष्ण लिखूँगी
मैं तो पुनः बसंत लिखूँगी !
जाति - धर्म बनने से पहले
वाला युग लिखना चाहेगी,
मेरी कलम सिर्फ मानव की
कर्म - कथा कहना चाहेगी,
मानवता की चिर यात्रा का
सुंदर, सदय, सुअंश लिखूँगी !
मैं तो पुनः बसंत लिखूँगी !
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमैं तो पुनः बसंत लिखूँगी ! एक नए उत्साह के साथ नव ऊर्जा का संचार करुँगी । सूखी पड़ी डाली पर नव कोपलें उगेंगी मिट चुकी उम्मीदों को आशा की धूप मिलेगी , धूल - मिट्टी से सनकर वह गंदैला न होगा , वरन अपनी जमीन से ही जुड़ेगा अभिमान से नही अपने स्वाभिमान से जाना जायेगा । यह नूतन की प्रेरणा से पल्लवित बसंत ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 29 जून 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसकारात्मक भावनाओं से ओतप्रोत सुंदर सृजन मीना जी, वसंत ही आत्मा की पुकार है क्योंकि हर किसी के मन की गहराई में प्रेम का दरिया बहता है, जो वसंत का आकांक्षी होने का साथ वसंत का वाहक भी है
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन … भाव पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना, बहुत दिन बाद आपकी ये सुंदर रचना पढ़ी. दिल खुश हो गया. पुनः बसंत लिखने की कल्पना ही रोमांचिंत करने वाली है. रचना के सभी बंध रोचक और सार्थक हैँ. हार्दिक शुभकामनायें 🌹🌹❤️❤️
जवाब देंहटाएंजाति - धर्म बनने से पहले
जवाब देंहटाएंवाला युग लिखना चाहेगी,
मेरी कलम सिर्फ मानव की
कर्म - कथा कहना चाहेगी,
मानवता की चिर यात्रा का
सुंदर, सदय, सुअंश लिखूँगी !
मैं तो पुनः बसंत लिखूँगी !
वाह!!!!
अद्भुत 👌👌
सकारात्मक भावों से ओतप्रोत बहुत ही लाजवाब सृजन।