गुरुवार, 16 मई 2019

ख़ता है अपनी या....

कहाँ - कहाँ से मिटाएँ
तुम्हारी यादों को,
ख़ता है अपनी या
इल्ज़ाम दें हालातों को। 

एक खंजर सा उतरता
है किसी सीने में,
लम्हे - लम्हे में 
तड़पता है कोई रातों को ।

यूँ तो तूफान ने
तोड़ा है बहुत कुछ मेरा,
मैंने छूने ना दिया
बस तेरी सौगातों को ।

नींद डरती है कि फिर
ख़्वाब ना बह जाए कोई,
कैद अश्कों को करो
रोक लो बरसातों को ।

तेरी खामोशी से दिल
ख़ौफ़ज़दा है इतना,
कैसे चाहे कि कोई
बाँट ले जज़्बातों को ।

आज खुद देख लिया
रूह को मरते अपनी,
और ग़ज़लों में कहा
ज़िंदगी की बातों को ।

17 टिप्‍पणियां:

  1. यूँ तो तूफान ने
    तोड़ा है बहुत कुछ मेरा,
    मैंने छूने ना दिया
    बस तेरी सौगातों को ।

    बहुत ही सुंदर सखी ,एक एक शब्द दिल में उतरता हुआ ,लाज़बाब......

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  2. जी नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. उत्तर
    1. जी सर, कोशिश कर रही हूँ बेहतर लिखने की। प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। सादर।

      हटाएं
  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/05/2019 की बुलेटिन, " मुफ़्त का धनिया - काबिल इंसान - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. असाधारण अनुपम भावों का मधुर तारतम्य लिये बहुत सुंदर रचना।

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  6. आज खुद देख लिया
    रूह को मरते अपनी,
    और ग़ज़लों में कहा
    ज़िंदगी की बातों को ।
    हमेशा की तरह बेहद खूबसूरत और लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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  7. सुंदर कविता |ब्लॉग पर आने हेतु ह्रदय से आभार

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  8. आज खुद देख लिया
    रूह को मरते अपनी,
    और ग़ज़लों में कहा
    ज़िंदगी की बातों को ।
    बहुत सुंदर रचना, मीना दी।

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  9. आप सभी अपना मूल्यवान समय निकालकर मेरी रचनाएँ पढ़ते और इतना हौसला बढ़ाते हैं। मैं तहेदिल से आप सबका शुक्रिया अदा करती हूँ।

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