आधा चाँद है, आधी रात
और मुकम्मल तन्हाई !
राज़ अधूरे, बात अधूरी
और मुकम्मल तन्हाई !
जागी जागी आँखों पर
अश्कों का हक भी पूरा नहीं,
नींद अधूरी, ख्वाब अधूरे
और मुकम्मल तन्हाई !
खुशबू से लिखे थे खत मैंने,
तुमको लफ्जों की आदत थी !
तुम पढ़ ना सके पैगाम अधूरे
और मुकम्मल तन्हाई !
कुछ हम पर था ऐतबार अधूरा
कुछ मगरूरी, कुछ दूरी !
चाह अधूरी, प्यार अधूरा
और मुकम्मल तन्हाई !
लहरों ने मिटा डाले होंगे
सागर के किनारे से सारे निशां,
वो रेत के घर, वो नाम अधूरे
और मुकम्मल तन्हाई !
मंजिल को पाने की चाहत
और राहों की पहचान नहीं,
है सफर अधूरा, साथ अधूरे
और मुकम्मल तन्हाई !
और मुकम्मल तन्हाई !
राज़ अधूरे, बात अधूरी
और मुकम्मल तन्हाई !
जागी जागी आँखों पर
अश्कों का हक भी पूरा नहीं,
नींद अधूरी, ख्वाब अधूरे
और मुकम्मल तन्हाई !
खुशबू से लिखे थे खत मैंने,
तुमको लफ्जों की आदत थी !
तुम पढ़ ना सके पैगाम अधूरे
और मुकम्मल तन्हाई !
कुछ हम पर था ऐतबार अधूरा
कुछ मगरूरी, कुछ दूरी !
चाह अधूरी, प्यार अधूरा
और मुकम्मल तन्हाई !
लहरों ने मिटा डाले होंगे
सागर के किनारे से सारे निशां,
वो रेत के घर, वो नाम अधूरे
और मुकम्मल तन्हाई !
मंजिल को पाने की चाहत
और राहों की पहचान नहीं,
है सफर अधूरा, साथ अधूरे
और मुकम्मल तन्हाई !
खुशबू ले लिखे ख़त और उनको शब्द पढने की मजबूती ... कमाल का ख्याल है जो बाँधा है इस रचना में ... हर बंध लाजवाब है ... अपने ही अंदाज़ का ...
जवाब देंहटाएंबधाई इस रचना की ...
खुशबू से लिखे थे खत मैंने,
जवाब देंहटाएंतुमको लफ्जों की आदत थी !
तुम पढ़ ना सके पैगाम अधूरे
और मुकम्मल तन्हाई !
वाह ! हृदय में एक कसक सी पैदा करती मुकम्मल रचना ।
जागी जागी आँखों पर
जवाब देंहटाएंअश्कों का हक भी पूरा नहीं,
नींद अधूरी, ख्वाब अधूरे
और मुकम्मल तन्हाई !
बेहद प्यारी रचना ,सादर स्नेह सखी
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार १६ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 15/04/2019 की बुलेटिन, " १०० वीं जयंती पर भारतीय वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह जी को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना 👌
जवाब देंहटाएंआधा चाँद है, आधी रात
जवाब देंहटाएंऔर मुकम्मल तन्हाई !
राज़ अधूरे, बात अधूरी
और मुकम्मल तन्हाई !
बेहतरीन लेखन हेतु बधाई स्वीकार करें ।
मुकम्मल तन्हाई ....
जवाब देंहटाएंतन्हाई कब से मुक्कमल होने लगी?
यह अंदाज़ निराला है
जी सर, मुकम्मल शब्द का प्रयोग 'पूर्ण' या 'पूरी'के अर्थ में किया था। यदि सही नहीं लग रहा तो कृपया मार्गदर्शन करें। आपका ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है। सादर धन्यवाद।
हटाएंशब्दकोश के अनुसार मुकम्मल मतवब सम्पूर्ण या समाप्त।
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर, लाजवाब हमेशा की तरह...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत प्यारी,दिल को छूती रचना, मीना दी।
जवाब देंहटाएंराज़ अधूरे, बात अधूरी
जवाब देंहटाएंऔर मुकम्मल तन्हाई !
बेहतरीन लेखन हेतु बधाई स्वीकार करें मीना दी
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
जवाब देंहटाएंशब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
आधा है चंद्रमा रात आधी ...
जवाब देंहटाएंवाला गाना याद आ गया..।
मैं सभी को सादर सस्नेह धन्यवाद देती हूँ। रचना के विश्लेषण में आप सभी के विचार मेरे लिए मूल्यवान हैं।
जवाब देंहटाएंतन्हाई ही सदा सगी है
जवाब देंहटाएंकभी न धोखा देती है
भीड़-भाड़ है दुःख का कारण
तन्हाई सुख देती है