शनिवार, 13 जनवरी 2018

अलाव

पेड़ों के टूटे पत्ते, कागज,
टूटी छितरी डालियाँ
कर इकट्ठा सुलगा दीं किसी ने !
सिमटे - ठिठुरते भिखमंगों,
अधनंगे फुटपाथियों की
सारी ठंड बटोरकर,
काँपता रहा अलाव !!!

पिता के झुकते कंधे,
माँ की उम्मीदभरी आँखें
कैसे करे वो सामना ?
आज भी ना मिली नौकरी !
तमाम डिग्रियाँ,आग में झोंककर
लगाया उसने जोरदार कहकहा,
सिसकता रहा अलाव !!!

अधभरे पेट से छल करते,
अलाव के चारों ओर
थिरकते पैर, बजती खंजड़ी,
चूल्हे पर खदबदाती खिचड़ी !
रैनबसेरा करते खानाबदोश
चल देंगे सुबह नए ठिकाने,
बंजारा हो गया अलाव !!!

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १६ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. वाह!मीना जी ,बहुत खूब !! सुंदर भावाभिव्यक्ति ।

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  3. बहुत ही मार्मिक सृजन ,सादर नमस्कार आपको

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  4. बेहद खूबसूरत एवं मार्मिक प्रस्तुति सखी।सादर नमन आपको।

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  5. मर्मस्पर्शी रचना मीना जी ।
    सटीक ।

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