बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

नन्हीं बुलबुल


नन्हीं बुलबुल

मेरे घर  की बालकनी  में बुलबुल ने घोंसला बनाया । ये मेरे लिये अनोखी बात थी । एक नया अनुभव था । 15-20 दिन लगातर काम करके , एक एक तिनका लाकर वह घोंसला बनाती । मैं उसकी कड़ी मेहनत की साक्षीदार थी । घोंसला अब एक छोटी सी टोकरी का आकार ले चुका  था। कभी कभी वो जोड़ी में आते थे । लेकिन अक्सर उनमें से एक ही आता था। मेरी  उत्सुकता बढ़ती जा रही थी आखिर कब देगी वो
अंडे ? कैसे होंगे बुलबुल के बच्चे ?  

 लेकिन रामनवमी के दिन सुबह सुबह बालकनी से कौवे की आवाज़ आई । मैं दौड़ी । पर कौवा पूरे घोंसले कौ चोंच में उठाये उड़ गया । दो दिन तक बेचारी बुलबुल बालकनी में चक्कर काटती रही । घोंसले को आधार देने के लिये  एक झूला सा बनाया था , उसी के पास आती फ़िर उड़ जाती।
बाद में उसने आना बंद कर दिया। मैं खुद को कोसती । दूसरी बालकनी में पक्षियों के लिये पानी ना रखती तो शायद कौवा नहीँ आता ।
                                             
  दोस्तों, कहानी अभी पूरी नहीँ हुई है । कल से  वो दोनो फ़िर आये हैं । फ़िर वहीं पर  घोंसला बना रहे हैं और हम इंसानों को जीने का ढंग सिखा रहे हैं ।

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