बंदी चिड़िया
सोने का पिंजरा था,
पिंजरे में चिड़िया थी,
पिंजरा था खिड़की के पास !
फिर भी चिड़िया रहती थी उदास ।
हर सुविधा थी, सुख था,
पानी और दाना था,
लेकिन चिड़िया को तो
बाहर ही जाना था,
लड़ना तूफानों से
खतरे उठाना था,
बंधन खुलने की थी आस !
चिड़िया रहती थी उदास ।
देखकर खुला गगन,
आँखें भर आती थी,
उड़ने की कोशिश में
पंख वो फैलाती थी,
पिंजरे की दीवारों से
सर को टकराती थी,
व्यर्थ थे उसके सभी प्रयास !
चिड़िया रहती थी उदास ।
दिन गुजरते गए,
स्वप्न बिखरते गए,
भूली उड़ना चिड़िया
पंख सिमटते गए,
इक दिन मौका आया
पिंजरा खुला पाया,
फिर भी उड़ने का ना किया प्रयास !
चिड़िया रहती थी उदास ।
दोस्तो, गुलामी की
आदत को छोड़ो तुम,
तोड़ो इस पिंजरे को
हौसले ना तोड़ो तुम,
संघर्ष और मेहनत से
मुँह को ना मोड़ो तुम,
बैठो मत, होकर निराश !!!
जैसे चिड़िया रहती थी उदास ।
सोने का पिंजरा था,
पिंजरे में चिड़िया थी,
पिंजरा था खिड़की के पास !
फिर भी चिड़िया रहती थी उदास ।
हर सुविधा थी, सुख था,
पानी और दाना था,
लेकिन चिड़िया को तो
बाहर ही जाना था,
लड़ना तूफानों से
खतरे उठाना था,
बंधन खुलने की थी आस !
चिड़िया रहती थी उदास ।
देखकर खुला गगन,
आँखें भर आती थी,
उड़ने की कोशिश में
पंख वो फैलाती थी,
पिंजरे की दीवारों से
सर को टकराती थी,
व्यर्थ थे उसके सभी प्रयास !
चिड़िया रहती थी उदास ।
दिन गुजरते गए,
स्वप्न बिखरते गए,
भूली उड़ना चिड़िया
पंख सिमटते गए,
इक दिन मौका आया
पिंजरा खुला पाया,
फिर भी उड़ने का ना किया प्रयास !
चिड़िया रहती थी उदास ।
दोस्तो, गुलामी की
आदत को छोड़ो तुम,
तोड़ो इस पिंजरे को
हौसले ना तोड़ो तुम,
संघर्ष और मेहनत से
मुँह को ना मोड़ो तुम,
बैठो मत, होकर निराश !!!
जैसे चिड़िया रहती थी उदास ।
Great Meema ji.
जवाब देंहटाएंAll poems are beautiful.
Great Meema ji.
जवाब देंहटाएंAll poems are beautiful.
सार्थक सन्देश देती ये सुंदर ,सरल सी रचना बड़ी प्यारी सी है प्रिय मीना बहन | सचमुच स्वछन्द हो संघर्ष में ही जीने में ही जीवन की सार्थकता है
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया प्रिय रेणु बहन।
हटाएंअब उड़ने की बात न करना, पंख कटे, दिन बहुत हो गए.
जवाब देंहटाएंपिंजड़े की बाहर की दुनिया से बिलकुल, अनजान हो गए.
बहुत सुंदर चित्रण. चिडिया की आदत बिगड गई इसलिए खुले दरवाजे वाले पिंजरे में से भी उड़ा नहीं गया उससे.
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (27-07-2020) को 'कैनवास' में इस बार मीना शर्मा जी की रचनाएँ (चर्चा अंक 3775) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
हमारी विशेष प्रस्तुति 'कैनवास' (संपूर्ण प्रस्तुति में सिर्फ़ आपकी विशिष्ट रचनाएँ सम्मिलित हैं ) में आपकी यह प्रस्तुति सम्मिलित की गई है।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
वाह!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर संदेश देती लाजवाब रचना।
वाह.....बहुत सुन्दर संदेश देती हुई अप्रतिम रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक.. बंधनयुक्त जीवन में भौतिक सुख भी तुच्छ ही लगते हैं । आयंगर सर के कथन से सहमत हूँ.. दुखी होने के बावजूद भी चिड़िया उड़ान भरना भूल जाती है । आपका संदेश अति उत्तम है । सकारात्मक चिंतन से युक्त संदेश । अति सुन्दर।
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