रंग मेरे बजरंग का
बदरंग मत करो भई,
हनुमानजी के नाम पर
हुड़दंग मत करो भई !!!
है अगर लड़ना तुम्हें,
आतंकियों से तुम लड़ो
है अगर पढ़ना, तो पाठ
प्रेमभाव का पढ़ो ।
मारुती को मत बनाओ
तुम कभी बिचौलिया,
मानस में हैं बसे हुए
भगवान राम औ' सिया ।
तुच्छ कार्य के लिए
उपयोग ना उनका करो,
वीर के गुणगान का
तुम यूँ निरादर ना करो।
तुलसी की मंजरी का
दुरुपयोग मत करो भई !
हनुमानजी के नाम पर
हुड़दंग मत करो भई !!!
रामबोला के हृदय की
बेल जब फूली रही,
तब पवनसुत की कृपा से
चालीसा सृजन भई ।
तुम चले अमृत कलश को
रास्तों पर छींटने,
मोती मेरे तुलसी की
माल के, चले बिखेरने ।
एक एक अक्षर है जिसका,
शक्तिमान बीज मंत्र !
कर रहे अपमान उसका
कैसा है ये राजतंत्र ?
हनुमंत की स्तुति जरा
हनुमंत को सुनाइए,
मन के कलुष धुल जाएँ,
यदि राम को सुनाइए ।
गाने हैं गर विरोध में तो
फिल्मी गीत गाइए,
बेहतर तो यही है कि
बात प्यार से सुलझाइए।
पर... गीत रामदूत का
बेढ़ंग मत पढ़ो भई।
हनुमानजी के नाम पर
हुड़दंग मत करो भई !!!
रंग मेरे बजरंग का
बदरंग मत करो भई
हनुमानजी के नाम पर
हुड़दंग मत करो भई !!!
किसी भी राजनीतिक गतिविधि से इस कविता का कोई लेना देना नहीं है। बचपन से ही हनुमान चालीसा का पाठ घर में करते और सुनते आए हैं और उसके प्रति मन में अपार सम्मान तथा श्रद्धा है जिसको यहाँ मैने अभिव्यक्त किया । महाकवि तुलसीदास जी की यह रचना सदैव ही मन में श्रद्धा एवं शक्ति का संचार करती रही है।