जीवन-घट रिसता जाए है...
काल गिने है क्षण-क्षण को,
वह पल-पल लिखता जाए है...
जीवन-घट रिसता जाए है ।
इस घट में ही कालकूट विष,
अमृत है इस घट में ही,
विष-अमृत जीवन के दुःख-सुख,
मंजिल है मरघट में ही !
जाने कितने हैं पड़ाव,
जिन पर मन रुकता जाए है...
जीवन घट रिसता जाए है ।
कभी किसी की खातिर भैया,
रुकता नहीं समय का पहिया,
चलती जाती जीवन नैया,
इस नैया का कौन खिवैया ?
बैठ इसी नैया में हर जन,
कहाँ पहुँचता जाए है ?
जीवन घट रिसता जाए है ।
युगों-युगों से रीत यही है,
जीना है आखिर मरने को,
जन्म नवीन, नया नाटक है,
नई भूमिका फिर करने को !
अगला अंक लिखे कोई तो,
पिछला मिटता जाए है....
जीवन - घट रिसता जाए है !
जीवन - घट रिसता जाए है ।।
काल गिने है क्षण-क्षण को,
वह पल-पल लिखता जाए है...
जीवन-घट रिसता जाए है ।
इस घट में ही कालकूट विष,
अमृत है इस घट में ही,
विष-अमृत जीवन के दुःख-सुख,
मंजिल है मरघट में ही !
जाने कितने हैं पड़ाव,
जिन पर मन रुकता जाए है...
जीवन घट रिसता जाए है ।
कभी किसी की खातिर भैया,
रुकता नहीं समय का पहिया,
चलती जाती जीवन नैया,
इस नैया का कौन खिवैया ?
बैठ इसी नैया में हर जन,
कहाँ पहुँचता जाए है ?
जीवन घट रिसता जाए है ।
युगों-युगों से रीत यही है,
जीना है आखिर मरने को,
जन्म नवीन, नया नाटक है,
नई भूमिका फिर करने को !
अगला अंक लिखे कोई तो,
पिछला मिटता जाए है....
जीवन - घट रिसता जाए है !
जीवन - घट रिसता जाए है ।।