मंगलवार, 29 नवंबर 2016

ना जाने क्यों...


ना जाने क्यों ?

ना जाने क्यों, खिंचा चला
आता है कोई....

ना है सूरत का पता,
और ना ही सीरत का,
कोई जान ना पहचान,
पर अहसान मानता है कोई ।

वक्त की उँगलियों ने
तार कौन से छेड़े ?
आज मन का मेरे
सितार बजाता है कोई ।

नहीं मिला जो ढूँढ़ने से
सारी दुनिया में,
आज अंतर से क्यूँ
पुकार लगाता है कोई ।

ताउम्र बहे अश्क,
पर समेट लिए अब,
उनकी कीमत जो
मोतियों से लगाता है कोई

कैसे कहूँ कि कौनसी ताकत
कहाँ - कहाँ पर है,
नजर न आए मुझे
फिर भी खींचता है कोई ।

ना जाने क्यों खिंचा चला
आता है कोई ।।
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रविवार, 27 नवंबर 2016

साँझ - बेला


साँझ - बेला

विदा ले रहा दिनकर
पंछी सब लौटे घर,
तरूवर पर अब उनका
मेेला है !

दीप जले हैं घर - घर
तुलसी चौरे, मंदिर,
अंजुरि भर सुख का ये
खेला है !

रात की रानी खिली
कौन आया इस गली,
संध्या की कातर-सी
बेला है !

मिल रहे प्रकाश औ' तम
किंतु दूर क्योंकर हम,
भटकता है मन कहीं
अकेला है !

विरह - प्रणय का संगम
नयन हुए फिर से नम,
फिर वही बिछोह का दुःख
झेला है !

मेघ-राग


मेघ-राग
पुरवैय्या मंद-मंद,
फूल रहा निशिगंध,
चहूँ दिशा उड़े सुगंध,
कण-कण महकाए...

शीतल बहती बयार,
वसुधा की सुन पुकार,
मिलन चले हो तैयार,
श्यामल घन छाए....

चंचल दामिनी दमके,
घन की स्वामिनी चमके,
धरती पर कोप करे,
रुष्ट हो डराए....

गरजत पुनि मेह-मेह
बरसत ज्यों नेह-नेह
अवनी की गोद भरी
अंकुर उग आए....

अंग-अंग सिहर-सिहर,
सहम-सहम ठहर-ठहर
प्रियतम के दरस-परस,
जियरा अकुलाए....

स्नेह-सुधा से सिंचित,
कुछ हर्षित, कुछ विस्मित,
कहने कुछ गूढ़ गुपित
अधर थरथराए....

शनिवार, 26 नवंबर 2016

कवि की कविता


कवि की कविता

मन के एकांत प्रदेश में,
मैं छुपकर प्रवेश कर जाती हूँ.
जीवन की बगिया से चुनकर
गीतों की कलियाँ लाती हूँ।।

तुम साज सजाकर भी चुप हो
मैं बिना साज भी गाती हूँ
जो बात तुम्हारे मन में है
मैं कानों में कह जाती हूँ।।

तुम कलम उठा फिर रख देते
मैं ठिठक खड़ी रह जाती हूँ
तुम कवि, तुम्हारी कविता मैं
शब्दों का रस बरसाती हूँ।।

जब शब्दकोश के मोती चुन
तुम सुंदर हार बनाओगे
वह दोगे भला किसे, बोलो !
मुझको ही तो पहनाओगे।।

तुमसे मैं हूँ, मुझसे तुम हो
जब याद करो आ जाती हूँ,
तुम कवि, तुम्हारी कविता मैं,
शब्दों का रस बरसाती हूँ ।।
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माँ की चिट्ठी

माँ की चिट्ठी
(बेटे के नाम)
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तुझे कहूँ मैं दिल का टुकड़ा
या कहूँ आँखों का तारा,
तुझे कहूँ मैं चाँद या सूरज,
या कहूँ जान से प्यारा।

तुझे पता है,
ये सारे शब्द कम हैं,

तेरे लिए  प्यार मेरा ,
शब्दों में समा नहीं सकता,
तुझे पाकर ही मैंने,
दुनियाँ की दौलत पाई है,
यह मेरा दिल
तुझको दिखा नहीं सकता

तेरे लिए इतना ही कह सकती हूँ
तू मेरा अंश है
तू मेरे सपनों का प्रतिबिंब है
तू मेरी परछाई है
मैंने तुझमें हमेशा
अपनी ही झलक पाई.है.

तू मेरा बेस्ट फ्रेंड है
मेरे मन की हर बात
बिना कहे ही जान लेता है,
तू मुझे कभी सताता है जिद करके,
तो कभी हँसाकर तंग करता है
कभी मुझसे रूठता, गुस्सा होता,
चिल्लाता आक्रोश प्रकट करता है.
तो कभी पीछे से आकर,
मुझे गुदगुदा देता है.

किसी और का मुझको        
'माँ' न कहने देना,
तेरे प्यार का ही तो सबूत है ....
मुझे कोई चिंता नहीं है अपनी,
जब तक तू मेरे साथ मौजूद है...
जब तक तू मेरे साथ मौजूद है।
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शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

हमसफर


हमसफर

आओ हम तुम
बन जाएँ हमसफर,
हो जाएगी आसान
ये मुश्किल भरी डगर ।

ना  तुमको ये पता हो
पहुँचना कहाँ हमें,
ना मुझको ही पता कि
ठहरना कहाँ हमें ।
मंजिल हो वहीं पर
जहाँ खुशियों का हो शहर।।
आओ हम तुम
बन जाएँ हमसफर,
हो जाएगी आसान
ये मुश्किल भरी डगर।।

ये गीले दरख्तों से,
टपकता हुआ पानी,
ये लहरें समंदर की,
ये नदियों की रवानी
जी लें जरा-सी जिंदगी,
दो पल यहीं ठहर ।
आओ हम तुम
बन जाएँ हमसफर,
हो जाएगी आसान
ये मुश्किल भरी डगर।।

हर रंग के गुलों से
महकता हो जो चमन,
इंसानियत ही हो जहाँ
हो प्यार औ' अमन
ऐसा जहान खोज लूँ
तू साथ दे अगर ।
आओ हम तुम
बन जाएँ हमसफर,
हो जाएगी आसान
ये मुश्किल भरी डगर।।
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बालकों से....

तुम मुस्कुराते रहना,
और खिलखिलाते रहना,
बनकर गुलाब अपनी
खुशबू लुटाते रहना।।

सपने जरूर देखो,
जी भर के जी लो जीवन...
हर रंग के सुमन से,
महके तुम्हारा जीवन...
हर हाल में कदम बस
आगे बढ़ाते रहना।।
तुम मुस्कुराते रहना,
और खिलखिलाते रहना,
बनकर गुलाब अपनी
खुशबू लुटाते रहना।।

तुम पर बुराइयों का,
ना हो असर कभी भी...
रहना कमल की भाँति,
चाहे रहो कहीं भी...
अपने गुणों का दर्शन
सबको कराते रहना।।
तुम मुस्कुराते रहना,
और खिलखिलाते रहना,
बनकर गुलाब अपनी
खुशबू लुटाते रहना।।

जीवन बहुत है छोटा,
और काम हैं बहुत से...
नहीं व्यर्थ में गँवाना,
कुछ पल भी जिंदगी के...
तुम बाहरी चमक से
खुद को बचाते रहना।।
तुम मुस्कुराते रहना,
और खिलखिलाते रहना,
बनकर गुलाब अपनी
खुशबू लुटाते रहना।।

छोटा लगे हिमालय,
तुम वह मुकाम पाना...
इतना तरक्की करना,
झुक जाए ये जमाना...
लेकिन बड़ों के आगे
सर को झुकाते रहना।।
तुम मुस्कुराते रहना,
और खिलखिलाते रहना,
बनकर गुलाब अपनी
खुशबू लुटाते रहना ll
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गुरुवार, 17 नवंबर 2016

अनमोल रिश्ते

कुछ रिश्ते,
होते हैं बड़े अनमोल...
पर वे अपने होने का,
नहीं पीटते ढ़ोल ।

नहीं जताते वे आपस में
किसने कितना सुख - दुःख बाँटा,
नहीं बताते इक दूजे संग
वक्त उन्होंने कितना काटा ?
उन रिश्तों में अश्रु-हास्य का
हर पल होता है मेल - जोल...

कुछ रिश्ते,
होते हैं बड़े अनमोल...

उन रिश्तों को कोई आँधी
कहाँ डिगा पाती है ?
उन रिश्तों को कोई हस्ती
कहाँ मिटा पाती है ?
उन रिश्तों में लेन - देन का
कोई मोल ना तोल ...

कुछ रिश्ते,
होते हैं बड़े अनमोल ।
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रविवार, 13 नवंबर 2016

कोयल ....क्या बोले ?



कोयल ....क्या बोले ?


कोयल तू क्या बोले?
जब भी अपना मुँँह खोले,
कानों में मिसरी घोले...
कोयल तू क्या बोले ?

कहाँ की वासी तेरा पता दे,
किसे पुकारे जरा बता दे,
पीपल, अंबिया, नीम, कदंब,
इस तरु से उस तरु डोले...

कोयल तू क्या बोले ?
जब भी अपना मुँँह खोले
कानों में मिसरी घोले ।

तेरी बोली जब सुन पाऊँ,
तुझे खोजने दौडी़ आऊँ,
तू छिप कर फिर कहाँ ,
मेरे मन के भावों को तौले

कोयल तू क्या बोले?
जब भी अपना मुँँह खोले,

तेरा मेरा क्या है नाता,
क्यों तेरा सुर इतना भाता ?
क्यों तेरे  सुर पंचम को सुन,
खाए हिया हिचकोले....

कोयल तू क्या बोले ?
जब भी अपना मुँँह खोले,
कानों में मिसरी घोले ।

मेरा संदेशा लेते जाना,
फिर तू उनके सम्मुख जाना,
उन वादों की याद दिलाना ,
लेकिन हौले - हौले...

कोयल तू क्या बोले ?
जब भी अपना मुँँह खोले,
कानों में मिसरी घोले,
कोयल तू क्या बोले ?
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शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

अब तो अपने दिल की मानो


अब तो अपने दिल की मानो

बड़े-बड़े सुख पाने की
जब से मन में ठानी,
छोटी-छोटी खुशियों की
हमने दे डाली कुर्बानी...

अच्छे हैं वे लोग जिन्होंने
अपने दिल की मानी,
अपनी राहें खुद खोजी
दुनिया की रीत ना मानी ।

मन कुछ कहता हमने उसकी
बात ना कोई मानी,
नकली सुख के पीछे भागे
सच्चाई ना जानी ।

बड़ी देर से पता चला,
ये कैसी थी नादानी
छोटी छोटी खुशियों की...

बारिश की नन्हीं नन्हीं
बूँदें थीं हमें बुलाती,
फूल, तितलियाँ, चंदा, तारे
भेज रहे थे पाती ।

सागर की लहरें मिलने का
संदेशा भिजवाती,
ठंडी पुरवैय्या हमसे कुछ,
कहने को रुक जाती ।
पर हम व्यस्त रहे कामों में,
कदर ना उनकी जानी
छोटी छोटी खुशियों की...

द्वार पर थी रातरानी,
महकता था मोगरा
खुला आँगन, जैसे उपवन
पेड़-पौधों से हरा ।

मिटाकर बगिया बनाया
हमने अपना घर बड़ा,
शांति का मंदिर गिराकर
शीशमहल किया खड़ा ।

अब किसको दें दोष,
सूरतें लगती सब अनजानी
छोटी छोटी खुशियों की...

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

ख्वाहिश



ख्वाहिश


सुनो,
मुझे कुछ जुगनू ला दो....
टिमटिम करते जुगनू ला दो ।
जुगनू ?
पागल हो तुम ।
चंदा ला दूँ ? तारे ला दूँ ?
एक - दो नहीं, सारे ला दूँ ?
नहीं,
मुझे बस जुगनू ला दो ।

उन्हें सजा लूँगी जूड़े में,
और टाँक लूँगी आँचल में....
कभी पहनकर उनके गहने,
तुम से मिलने आऊँगी मैं ।
बस थोड़े से जुगनू ला दो,
टिमटिम करते....

और रात की डिबिया में भर,
कुछ को रख लूँगी सिरहाने ।
बाँचूँगी फिर वो सारे खत,
जो लिखे थे, तुमने मुझको ।
टिमटिम करते जुगनू ला दो....

सुनो,
मुझे कुछ जुगनू ला दो ।
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